जिंदगी कभी निराश होना नहीं सिखाती
निराशा के क्षणों को कभी भी जीवन पर हावी न होने दें। बल्कि जीवन के हताशा भरे क्षणों से कुछ सीखने का प्रयास करें। इन लम्हों से उबरकर आगे बढ़ना और खुद को बेहतर बनाने की कोशिश ही हमारा लक्ष्य होना चाहिए।
चाहे कामकाजी जीवन हो, व्यक्तिगत संबंध या फिर स्वास्थ्य से जुड़ी परेशानियां, इन सभी कारणों से हमारे जीवन में निराशा के क्षण आते हैं। कुछ ऐसे क्षण जब हम अपनी शक्ति और सामर्थ्य को कम महसूस करने लगते हैं। खुद को असमर्थ और असहाय पाते हैं।
लगने लगता है कि हम जीवन को आगे ले जाने में खुद को सामर्थ्यवान नहीं पा रहे हैं। निराशा के ऐसे क्षण हमें अवसाद और दुख भी देते हैं। लेकिन निराशा को जीवन पर हावी होने दिया जाए तो जीवन की स्वाभाविक गति प्रभावित होने लगती है इसलिए उन पलों से बाहर आ जाने का अर्थ ही जीवन है। कई बार पूर्व में दुर्घटनाएं हमारे मन को अपने कब्जे में कर रखती हैं और हम खुद को उनसे मुक्त कर पाने में कठिनाई अनुभव करते हैं।
आगे बढ़ने की राह में वे सबसे बड़ी बाधा हैं। हार, असफलता और तकलीफों से उपजी निराशा को पीछे छोड़कर ही जीवन को अच्छे से जिया जा सकता है। अपनी निराशाओं से उबरने के लिए कुछ छोटे प्रयास कारगर सिद्ध हो सकते हैं।
अपेक्षाओं को कम रखें
इस बात का स्मरण रहे कि हमेशा ही जीवन में जीत नहीं मिलती है। हर उम्मीदवार को नौकरी नहीं मिल जाती है, हर काम पक्ष में ही नहीं हो पाता है। जीवन तो उतार चढ़ाव का नाम है। यहां हर तरह की स्थिति बनती है और आनंद भी इसी में है। इसलिए हर स्थिति में सहज रहना जरूरी है। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि आप अपने लिए ऊंचे लक्ष्य तय ही न करें। अपने लक्ष्य ऊंचे रखें लेकिन उन लक्ष्यों के पूरा न होने पर भी जीवन को रुकने न दें।
किंग सोलोमन ने एक जगह लिखा है, जब मैं उन चीजों को देखता हूं जिन्हें पाने के लिए मैंने कडी मेहनत की तो वे सारी चीजें बहुत अर्थहीन नजर आती हैं... मुझे ऐसा लगता है मानो मैं हवा का पीछा कर रहा था। इसलिए अपनी अपेक्षाओं का एक संतुलन बनाना जरूरी है। उनके लिए प्रयास हो लेकिन प्रयास सफल न होने पर निराशा घर न करे। अपने मन का हो तो अच्छा और न हो तो और भी अच्छा के भाव से अपनी अपेक्षाओं पर खरा उतरने का प्रयास करें।
हार से सीखने का प्रयास करें
असफलता और हार भी हमें बहुत कुछ सीखने का मौका देती है। जब भी हम हारते हैं या निराश होते हैं तब हम धैर्य रखना सीखते हैं। हम सफलता के लिए अधिक उद्यत होते हैं। जब भी हार होती है तो उसे इस तरह ही देखें कि आपके प्रयास सफलता के लिए पर्याप्त नहीं थे और आपको सफलता के लिए और तैयारी की जरूरत है। निराशा में ही आशा छिपी होती है।
क्रिकेट के मैच में एक टीम हारती है लेकिन अगले मैच में वह इस हार को भुलाकर जीतने की कोशिश करती है। ऐसे भी पर्वतारोही हैं जिन्हें पर्वत ने कई बार हराया लेकिन उन्होंने जीत के लिए साहस नहीं हारा और अंतत: पर्वत उनकी इच्छाशक्ति के आगे झुका। तो अपनी हार में उन कारणों को ढूंढने का प्रयास होना चाहिए जिनसे आप सफलता से दूर रहे और उन्हें सुधारने का प्रयास आपको विजेता बनाता है। जब आप एक एक करके अपनी कमजोरियों पर काम करते हैं तो आप खुद को विपरीत परिस्थितियों के योग्य बना लेते हैं।
मित्रों की लें मदद
जब भी जीवन में हताशा से सामना हो तो अपने मित्रों के साथ समय बिताएं। ऐसे समय जबकि आप हताशा महूसस कर रहे हैं तब खुद को दुनिया से अलग-थलग न कर लें क्योंकि इस तरह आप अपने ही विचारों में कैद हो जाते हैं। मित्र उन खिड़कियों की तरह होते हैं जिनसे जीवन में ताजी हवा आती है। चाहे कितनी भी विकट परिस्थिति क्यों न हो एक अच्छा मित्र आपको गहन निराशा के क्षणों से उबारने का काम करता है।
अक्सर हम परिवार के साथ बहुत सी बातें साझा नहीं कर पाते हैं क्योंकि उम्र और समझ का अंतर बीच में होता है लेकिन हमारे मित्र हमारी मनोस्थिति और हमारे बर्ताव को बेहतर तरीके से समझते हैं। वे हमारी जरूरतों से परिचित होते हैं और इसलिए उनके सामने अपनी पीड़ा कहने में किसी तरह की झिझक नहीं होना चाहिए। वे ठीक समाधान तलाशने में हमारी मदद करते हैं। एक अच्छा दोस्त विकट परिस्थितियों में हमारा सबसे बेहतर मार्गदर्शक होता है।
प्रिय चीजों से जुड़ें
जब भी आप कमजोर क्षणों से गुजरें तो उन चीजों से जुड़ें जो आपको खुशी देती हों। आपका आनंद चाहे जो हो उसमें डूबने की कोशिश करें। जब आप अपने आनंद के क्षेत्र में डूबेंगे तो निराशा से उबर जाएंगे। निराशा हम इसलिए महसूस करते हैं कि हमें जीवन का कोई अर्थ नजर नहीं आता है लेकिन जब हम अपनी रूचि की चीजों को देखते हैं तो जीवन के प्रति आशा बंधती है।
कोई अच्छी पुस्तक, कविता, संगीत, फिल्म या मनबहलाव का कोई भी अन्य माध्यम जो हमारा ध्यान निराशा के उन क्षणों से कहीं ओर ले जाता हो वह ऐसे समय में हमारा आश्रय बन सकता है और हमें राहत दे सकता है।
भूत ना भविष्य केवल वर्तमान
जब भी हम बीती चीजों के बारे में ज्यादा सोचते हैं तो मन में एक अजीब सी उदासी घर कर ही जाती है, इसी तरह भविष्य के बारे में सोचते हुए भी हम आशंकित और डरे हुए रहते हैं। इनका असर हमारे वर्तमान को खराब करता है। अगर हम आज में ही जिएं और आज हम क्या अच्छा कर सकते हैं उस विचार के साथ आगे बढ़ें तो शायद जीवन में निराशा के लिए कोई जगह नहीं होगी।
हम जो नहीं कर पाए उसके लिए उदास क्यों होना, हम आज जो कर सकते हैं उस पर बीते दिनों का असर आखिर क्यों आने देना चाहिए। बीती बातों को भुलाकर अगर आज में ही अपनी उर्जा लगाई जाए तो बेहतर नतीजे हमें आगे बढ़ने को ही प्रेरित करेंगे। कल में अटके रहकर हम अपने आज को भी प्रभावित करते हैं और आने वाले कल को भी।
सभी को प्रसन्न करना असंभव
जब आप अपने आसपास मौजूद सभी लोगों को प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं तो इस तरह के लक्ष्य को कभी प्राप्त नहीं कर पाते हैं। ऐसे में निराशा आपको घेरे यह बहुत संभव है। इस तरह की स्थिति से उपजने वाली निराशा से खुद को बचाना हो तो आपको अपनी प्रसन्नाता के लिए काम करना चाहिए। अपनी प्राथमिकताएं तय करना बहुत जरूरी है। याद रहे जरूरत से ज्यादा वादे भी हमें हताशा की स्थिति में डाल सकते हैं।
किसी की मदद कीजिए
जब आप खिन्न या हताश महसूस कर रहे हैं तो अपने आसपास किसी की मदद करने का कोई अवसर तलाशिए। दूसरों के साथ जुड़िए। दूसरों की प्रसन्नता के लिए छोटा काम हाथ में लीजिए, आपको अपना जीवन अर्थवान नजर आने लगेगा।
जीवन मूल्यवान लगने लगेगा। हम अक्सर ढर्रे पर चलते हुए भी जीवन का मूल्यांकन करने में असमर्थ हो जाते हैं। हमें लगता है कि जीवन उतनी ही दूर तक है जितना हम देख पा रहे हैं लेकिन जीवन उससे भी आगे है, वहां भी जहां हम नहीं देख पा रहे।
स्वयं को मूल्यहीन न समझें
व्यक्ति कई मौकों पर खुद को मूल्यहीन समझने लगता है। ऐसे में किसी भी तुलना से दूर रहते हुए खुद पर भरोसा रखकर आगे बढ़ना ही आपका मंत्र होना चाहिए।
क्या वाकई मैं कुछ अच्छा काम नहीं कर रहा हूं? क्या मैं अपनी पूरी क्षमता से काम कर पा रहा हूं? क्या मैं इतना अच्छा हूं कि लोग मुझसे प्यार करें? ऐसे खयाल बहुत से लोगों के मन में उमड़ते हैं। अपने प्रियजनों और परिजनों की नजर में और अपने कामकाजी जीवन में अपने महत्व को लेकर अक्सर लोग कुछ ज्यादा ही चिंतित होते हैं। ऐसी चिंता बहुधा उन्हें अपनी क्षमता से कमतर होने का एहसास कराती है।
ऐसा समय सभी के जीवन में कभी न कभी जरूर आता है जबकि व्यक्ति को अपनी क्षमताओं पर संदेह होने लगता है, अपनी योग्यता पर वह खुद ही प्रश्नचिह्न लगाने लगता है। जिंदगी के ऐसे लम्हों में जब आप खुद को कमतर आंकें तो अपने आत्मविश्वास को संभालने की बहुत ज्यादा जरूरत है।
इसाक असीमोव ने इसी तरफ इशारा करते हुए कहा है-'सभी बातों में सबसे महत्वपूर्ण है कि कभी यह न सोचें कि आपका कोई महत्व नहीं है। किसी भी व्यक्ति को ऐसा नहीं सोचना चाहिए। मेरा मानना है कि जीवन में मिलने वाले लोग खुद को पहचानने में आपकी मदद ही करेंगे।" असीमोव का कहना है कि जिन लोगों को देखकर हम खुद को कमतर समझते हैं वे तो खुद को समझने में हमारी मदद भर करते हैं। अपने पर संदेह से उबरने में कुछ कदम आपकी मदद कर सकते हैं।
हर व्यक्ति का अलग स्तर
अगर आपको लगता है कि आपको अपने साथियों के मुकाबले बहुत ही कम चीजें आती हैं। उनके स्तर तक पहुंचने के लिए आपको बहुत लंबा समय लगेगा तो इस तरह दूसरों के साथ तुलना करने के बजाय आपको समझना चाहिए कि उनके और आपके स्तर में फर्क है, और आप दोनों की प्राथमिकताएं भी अलग-अलग हैं।
समान परिस्थितियों में रहने वाले दो लोग भी एक स्तर पर नहीं होते हैं इसलिए खुद को दूसरों से कमतर समझने के भाव से उबरना चाहिए। इसके साथ यह भी है कि सिर्फ आप अकेले नहीं हैं जो दूसरों से इस तरह की तुलना करके दबाव में आते हैं बल्कि ऐसा सभी लोगों के साथ होता है। मुश्किल उन्हीं लोगों के साथ पेश आती है जो खुद को मूल्यहीन मान बैठते हैं। इसलिए जरूरी यही है कि खुद को मूल्यहीन न समझें।
हर व्यक्ति में कोई न कोई खूबी
मान लीजिए कि आप मार्केटिंग में बहुत अच्छे नहीं हैं और इसी कारण आप खुद को साबित करने का दबाव महसूस करते हों लेकिन हो सकता है कि आप दूसरों के साथ तालमेल में माहिर हों। अक्सर हम अपने भीतर उन्हीं गुणों को तलाशते हैं जो हमें दूसरों में दिखाई देते हैं, उन गुणों की तलाश नहीं करते जो हमारे भीतर हैं।
हम दूसरों के गुणों को तो देख पाते हैं लेकिन कई बार अपने गुणों की तरफ ही नजर नहीं जाती है। ऐसे में अपनी क्षमताओं और योग्यताओं को पहचानने की जरूरत है। इसे यूं समझिए कि आप अपने भाई, बहन, पिता, टीचर, बॉस की तरह नहीं होते हैं। आपकी परवरिश और आपका स्वभाव दूसरों से अलग ही होगा। हर व्यक्ति दूसरे से अलग होता है। ऐसे में अपने को कमतर आंकने का कोई अर्थ नहीं है।
भविष्य नहीं वर्तमान में रहें
ऐसे बहुत से लोग हैं जो सोचते हैं कि जब उनकी नौकरी अच्छी हो जाएगी तो वे ज्यादा बेहतर स्थिति में होंगे। या फिर जब उनका अपना घर होगा तब उनके लिए कोई आकांक्षा बाकी नहीं रह जाएगी। जब वे पूरी तरह स्वस्थ होंगे तभी वे खुश रहेंगे। लेकिन इस तरह की सोच के साथ लोग अपने 'आज" की पूरी तरह उपेक्षा करते हैं और उस भविष्य में जीते हैं जो संभावित है।
ऐसे लोग खुशियों के पीछे दौड़ते रहते हैं लेकिन हमेशा उन्हें खुशियां अपने से आगे ही नजर आती है और उन्हें लगता है कि उनका आज मूल्यहीन है। जब वे आज के महत्व को समझेंगे तो उन्हें जीवन मूल्यवान नजर आएगा।
खुद से प्यार करें
जब भी जीवन में दु:ख हो तो आपको प्यार की सबसे ज्यादा जरूरत होती है। अगर आप खुद के प्रति ही अच्छा नहीं महसूस करेंगे तो चीजें ठीक नहीं होगी। कठिन समय में इंसान को अपने प्रति अधिक उदार होने की जरूरत होती है। हम देखते हैं कि जब भी बच्चे को चोट पहुंचती है या वे दु:खी होते हैं तो माता-पिता उन्हें दुलारते हैं और कहते हैं कि सबकुछ ठीक होगा। यह आश्वासन उनकी जिंदगी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
हमें अपने प्रति भी इस तरह के प्रेम के प्रदर्शन की जरूरत है। अपने प्रति अच्छा सोचकर आप सही दिशा में आगे बढ़ सकेंगे। अपने गुणों के प्रति विश्वास रखना आपको भीतर से भी मजबूत बनाएगा।
आकलन का नजरिया अपना हो
हम खुद को किस तरह देखें और खुद का मूल्यांकन किस तरह करें इसका विचार हमें अपने आसपास के लोगों से मिलता है लेकिन पूरी तरह उनके विचारों के अनुरूप चलने से आप कभी पूरी तरह अपने मन का काम नहीं कर पाएंगे।
हमेशा उनके विचारों के अनुरूप बने रहने का दबाव आप पर बना रहेगा और आप हमेशा खुद को कमतर पाएंगे, इसलिए किसी की भी नकारात्मक प्रतिक्रिया या नकारात्मक विचार के आधार पर खुद के आकलन से बचें। इस तरह आप अपनी ऊर्जा को भी बचा पाएंगे और सही दिशा में आगे बढ़ पाएंगे।
भविष्य आपके हाथ में है
आप अपने विचारों के स्वामी हैं और अपनी गतिविधियों को नियंत्रित भी कर सकते हैं। जब एक बार आप जान लेते हैं कि हर तरह की स्थिति से निकला जा सकता है तो कुछ भी मुश्किल नहीं है। इसलिए आज अगर आप कठिन परिस्थितियों से गुजर रहे हैं तो कल उसमें बदलाव भी कर सकते हैं।
हमेशा याद रखें कि अपने भविष्य को बदलना आपके हाथ में है और अगर आप आज कडी मेहनत करते हैं तो भविष्य में अच्छे परिणाम हासिल कर सकते हैं। मुश्किलों से जूझते हुए जब आप चीजों को बेहतर बनाएंगे तो इससे आपका आत्मसम्मान भी बढ़ना तय है।
जो आप कर सकते हैं दूसरे नहीं
कुछ काम ऐसे भी होते हैं जो आप दूसरों से ज्यादा बेहतर तरीके से कर सकते हैं और इस लिहाज में आप उनसे बहुत ज्यादा आगे हैं। यह खुद को दिलासा देने के लिए नहीं है बल्कि इसका महत्व इस रूप में है कि इस तरह की सोच आपको प्रेरित और उत्साहित बनाए रखती है।
जीवन एकपक्षीय नहीं है बल्कि उसमें कई क्षेत्र हैं और हर क्षेत्र में अलग तरह की योग्यता की जरूरत होती है। याद रखें कि आपके क्षेत्र के मुताबिक आपकी काबिलियत के भी अपने मायने हैं।
सकारात्मक सोच में चिंतन का महत्व
चिंतन एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। इसमें नए विचार आपके दिमाग में आते हैं जो निर्णय लेने में सहायक होते हैं। चिंतन में आए विचार की तुरंत प्रतिक्रिया होती है। विचार को आप पसंद करते हैं या नापसंद लेकिन आपका विवेक विचार को मूर्त रूप देने के लिए अच्छा या बुरा के बारे में सोचता है। और इस तरह से आप सही निर्णय को जानकर संभावनाओं का चुनाव करते हैं।
ऐसे करें चिंतन
आप हर तरह की संभावनाओं के बारे में सोचें।
दिमाग को खुला छोड़ दें और जो भी आपके सामने आए उस पर विचार करें।
वास्तविक विश्लेषण करें, क्योंकि आप स्वयं जानते हैं।
विवेक से काम लेकर असंभव शब्द को अलग कर दें।
सकारात्मक चिंतन पर सकारात्मक प्रेरक 'रॉबर्ट एच. शुलर' के विचारों से प्रेरणा लेना चाहिए। उनके विचारों के अनुसार, 'संभावनापूर्ण चिंतन विचारों का मैनेजमेंट है। औसत मस्तिष्क में हर दिन दस हजार विचार आते हैं।
इनमें से अधिकांश नकारात्मक होते हैं। संभावनापूर्ण चिंतन सकारात्मक विचारों को नकारात्मक विचारों से अलग करता है। संभावनापूर्ण चिंतक हर विचार में यह खोजते हैं कि क्या इसमें संभावना है।' इसीलिए हमेशा अपने सहयोगियों की सलाह जरूर लेनी चाहिए।
उनका मानना था कि महान व्यक्तियों का जीवन चरित्र बताता है कि उनकी सफलता में उनके सहयोगियों का कितना अधिक स्थान था। उन्होंने कुछ उदाहरण देकर यह बात स्पष्ट की।
अकबर ने बादशाह बनने पर अपने नवरत्नों (सलाहकारों) की मदद से राज्य का प्रबंधन कुशल तरीके से किया।
महाभारत-काल का अर्जुन व्याकुल था। वह कुशल योद्धा था, परंतु उसकी सोच स्पष्ट नहीं थी। अर्जुन का राज्य ले लिया गया था, अर्जुन की पत्नी द्रोपदी का अपमान किया गया, युद्ध के मैदान में भी वह निश्चित नहीं था कि वह अपने रिश्तेदारों, गुरुओं और अपने मित्रों करे या न करे। इससे अपने सखा श्रीकृष्ण को सलाहकार बनाया और तब उनके परामर्श से वह इतिहास बनाने में सफल हो सके।
जर्मनी के जीव वैज्ञानिक एयरलिक के मधुर व्यवहार व संबंधों से प्रभावित होकर उनके सहयोगी समर्पण की भावना से काम करते थे। एक धनी विधवा ने प्रयोगशाला बनाने के लिए उन्हें धन दिया था, जिसके बदले में उन्होंने अपनी प्रयोगशाला का नाम उसके पति के नाम पर रख दिया।
इटेलियन फिजिस्ट मारकोनी( 1874-1937) में उत्साहपूर्ण सहयोग पाने की अपूर्व क्षमता थी और इसी गुण की वजह से उन्होंने 35 वर्ष की उम्र में यानी ( 1909) में भौतिकी का नोबल पुरस्कार मिला।
ब्रिटेन के प्रसिद्ध फिजिसिस्ट अर्नेस्ट रदरफोर्ड (1871-1937) के साथ सहयोग करने वाले कई प्रसिद्ध वैज्ञानिक भी थे। उनकी व्यंग्य शैली की क्षमता के कारण ही वह अपने साथियों का काम का बोझ हल्का करते रहते थे।
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