सावन का महिना एक अजीब सी मस्ती और उमंग लेकर आता है।
चारों ओर हरियाली की जो चादर सी बिखर जाती है उसे देख कर सबका मन झूम उठता है। ऐसे ही सावन के सुहावने
मौसम में आता है तीज का त्योहार। श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को श्रावणी तीज कहते हैं। उत्तर भारत में यह
हरियाली तीज के नाम से भी जानी जाती है। सावन के महीने में तीज, नागपंचमी एवं सावन के सोमवार जैसे उत्सव उत्साह पूर्वक मनाए जाते हैं।
मान्यता के अनुसार माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए इस व्रत का पालन किया था। परिणामस्वरूप
भगवान शिव ने उनके तप से प्रसन्न होकर उन्हें पत्नी रूप में स्वीकार किया था। माना जाता है कि श्रावण शुक्ल तृतीया के
दिन माता पार्वती ने सौ वर्षों के तप उपरान्त भगवान शिव को पति रूप में पाया था। इसी मान्यता के अनुसार स्त्रियां माता पार्वती का पूजन करती हैं।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार हरियाली तीज का त्योहार बहुत पावन माना जाता है। महिलाएं इस दिन 16 श्रृगांर करती हैं।
तीज पर मेहंदी लगाने, चूडि़यां पहनने, झूले झूलने तथा लोक गीतों को गाने का विशेष महत्व है। तीज के त्योहार वाले दिन
खुले स्थानों पर बड़े-बड़े वृक्षों की शाखाओं पर, घर की छत की कड़ों या बरामदे में कड़ों में झूले लगाए जाते हैं जिन पर
स्त्रियां झूला झूलती हैं। हरियाली तीज के दिन अनेक स्थानों पर मेलों का भी आयोजन होता है।तीज का त्यौहार भारत के
कोने-कोने में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण त्योहार है। यह त्यौहार भारत के उत्तरी क्षेत्र में हर्षोउल्लास के साथ मनाया
जाता है। सावन का आगमन ही इस त्योहार के आने की आहट सुनाने लगता है समस्त सृष्टि सावन के अद्भूत सौंदर्य में भिगी हुई सी नजर आती है।
स्त्रियाँ अपने हाथों परमेहंदी लगाती हैं त्योहार विशेष को ध्यान में रखते हुए भिन्न-भिन्न प्रकार की मेहंदी लगाती हैं।
मेहंदी रचे हाथों से जब वह झूले की रस्सी पकड़ कर झूला झूलती हैं तो यह दृश्य बड़ा ही मनोहारी लगता हैं मानो
सुहागिन आकाश को छूने चली हैं। इस दिन सुहागिन स्त्रियाँ सुहागी पकड़कर सास के पांव छूकर उन्हें देती हैं। यदि सास
न हो तो स्वयं से बड़ों को अर्थात जेठानी या किसी वृद्धा को देती हैं। इस दिन कहीं-कहीं स्त्रियाँ पैरों में आलता भी लगाती
हैं जो सुहाग का चिह्न माना जाता है। हरियाली तीज के दिन अनेक स्थानों पर मेले लगते हैं और माता पार्वती की सवारी
बड़े धूमधाम से निकाली जाती है। वास्तव में देखा जाए तो हरियाली तीज कोई धार्मिक त्योहार नहीं वरन महिलाओं के लिए एकत्र होने का एक उत्सव है।
नवविवाहित लड़कियों के लिए विवाह के पश्चात पड़ने वाले पहले सावन के त्योहार का विशेष महत्त्व होता है। तीज
का आगमन वर्षा ऋतु के आगमन के साथ ही आरंभ हो जाता है। आसमान काले मेघों से आच्छादित हो जाता है और वर्षा
की बौछर पड़ते ही हर वस्तु नवरूप को प्राप्त करती है। ऐसे में भारतीय लोक जीवन में हरियाली तीज या कजली तीज
महोत्सव बहुत गहरा प्रभाव देखा जा सकता है। इस अवसर पर विवाह के पश्चात पहला सावन आने पर नव विवाहिता
लडक़ी को ससुराल से पीहर बुला लिया जाता है विवाहिता स्त्रियों को उनके ससुराल पक्ष की ओर से सिंजारा भिजवाया
जाता है जिसमें वस्त्र, आभूषण, श्रृंगार का सामान, मेहंदी और मिठाई इत्यादि सामान भेजा जाता है।
महिलाओं
को दिन भर उपवास रखना चाहिए और श्रृंगार करना चाहिए। इस दिन कुछ इस तरह की
चीजों का आदान-प्रदान किया जाता है, ताकि दोनों परिवारों के रिश्तें मधुर
हो सकें।
मुख्य रूप से यह त्योहार अच्छे और मनचाहे वर की प्राप्ति का है। कि जिन कन्याओं का विवाह नहीं हो रहा हो उन कन्याओं
को इस दिन व्रत और पूजा पाठ करना चाहिए। इस दिन पूजा-पाठ का विशेष महत्व होता है। विवाहित महिलाओं को संयुक्त रूप से भगवान शिवजी और माता पार्वती की पूजा करनी चाहिए
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